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Wednesday, November 28, 2018

Sahej Yog | सहज योग

साधना के सोपान में तीन चरण होते हैं विद्वता,सिद्धता,सरलता, विद्वान होना सरल है सिद्धियाँ भी मिल जाएंगी थोड़े बहुत परिश्रम से परन्तु सरलता अभ्यास से न आएगी,एक कथा है एक लड़का था घर में पड़ा रहता था खाना खाया और सोये रहना उसका काम,घर वालों ने घर से निकाल दिया काम न करने की वजह से, निकल गया मंदिर के बाहर देखा पुजारी जी बहुत मोटे तगड़े और उनके शिष्य भी वैसी ही सेहत के मालिक सोचा काफी खाने को मिलता होगा चल पड़ा पुजारी जी की शरण में कहा कि मुझे भी शिष्य बना लीजिये, पुजारी जी ने बना लिया शिष्य कहा दो टाइम दिन में पंगत रहती है खूब खाओ पियो और तुलसी की माला पहना दी बाकि टाइम भजन करो, लड़के ने कहा कि पंगत में 4 बार खाना खा सकते है ?, उसकी भी मंजूरी हो गयी, मज़े आ गए खाना पीना और मस्त रहना , आखिर दुःख की घड़ी भी आनी थी एकादसी का दिन वैष्णवों का व्रत का दिन, भोजनालय में चूल्हे ठंडे , कोई हलचल नहीँ, लड़का परेशान पहुंचा गुरु जी के पास पुछा भोजन के बारे में , जबाब की आज तो कुछ न मिलेगा न बनेगा, कहने लगा गुरु जी हम न रह पाएंगे कुछ कीजिए|



गुरु जी ने दया दिखाई और कहा अनाज ले लो भण्डार से 2 सेर आटा इत्यादि दे दिया कहा नदी किनारे जाओ वहीं बना लेना और प्रभु को भोग लगा कर ही खाना बाकि प्रसाद रूप में,लो जी काम बन गया चला गया भजन बनाया वहां और लगा भगवान को बुलाने, राजा राम आइये मेरे भोजन को भोग लगाइये, कोई नहीं आया परेशान हो गया गुरु की आज्ञा थी भोग लगा कर ही खाना, फिर याद आया की भगवान शायद मंदिर के 56 भोग का इंतज़ार कर रहे होंगे , हँसा भगवान को पुकार कर कहने लगा 56 भोग तो क्या आज मंदिर में जैसा मैंने बनाया है वैसा भी न मिलेगा , मैं भी वहीं से भाग कर आया हूँ, चुपचाप जैसा मिल रहा है खा लो मंदिर के चक्कर में भूखा ही सोना पड़ेगा, इसी भाव से भगवान रीझ गये और प्रकट हुए जानकी सीता सहित राम जी, भक्त ने जब दो जनो को देखा तो और परेशान हो गया कि भोजन तो 2 जनो के लिये ही बनाया था और दो ये आ गए बुलाया एक को था ,चलो कोई बात नहीं मिल कर खा लेंगे कम ही मिले मिलेगा तो, और भगवान को कहने लगा , अगली एकादशी को जल्दी आ जाना, हो गया अगली एकादशी को गुरु जी से कहने लगा वहां दो भगवान आते हैं अनाज कम ही गया था, गुरु जी हंसने लगे की कम पड़ गया होगा इसे अनाज तो बहाने लगा रहा है,कोई बात नहीं 1 सेर और ले जाओ, लो जी खाना बनाया प्रभु को भोग लगाने की गुहार लगाई,सीता राम आइये मेरे भोजन को भोग लगाइये प्रभु प्रकट हुए परन्तु अबकी बार राम ,लखन सीता, जी तीनो साथ ही आये और परेशान हो गया एक बुलाया दो आये दो बुलाया तीन आगये हद हो गयी लगा कहने प्रभु को की ऐसा अच्छा नहीं है चलो कोई बात नहीं एडजस्ट कर लेंगे परंतु बार बार ऐसा नहीं चलेगा , पिछली एकादसी कम में गुजारा किया अब भी वैसा ही, चलो गुजारा कर ही लिया अगली एकादशी को गुरु जी को कहने लगा वहाँ तीन तीन भगवान हो जाते हैं अनाज थोड़ा बड़ा दीजिए, गुरु जी सोचने लगे की अन्न कहि बेच तो नही रहा देखते हैं, उसकी जरूरत के अनुसार अनाज भंडार से दे दिया, आज भक्त ने भी अनाज बनाया नहीं पकाया नहीं वैसे ही रख दिया की जितने आएंगे वैसे ही उस हिसाब से पक लूँगा, बुलाया भगवान को राम आइये सीता लखन को भी साथ बुलाइये मेरे भोजन को भोग लगाइये, भगवान हुए प्रकट पुरे राम दरबार सहित, राम , लखन, सीता, भरत, शत्रुघ्न जी और साथ में हनुमान जी, हे भगवान तीन बुलाये और सारे रिस्तेदार साथ ले आये खुद तो आये ही हनुमान जी की तरफ देखते हुए कहता है वानर भी साथ ले आएं है आज तो कुछ न मिलेगा भोजन में , कहने लगा भगवान को की आज अनाज ही है खुद इन लोगों से पक्वाओ और खाओ, भगवान जी मुस्कुराने लगे की आज भगत की ही चलेगी, भरत जानकी लक्ष्मण जी हनुमान जी रसोई बनाने को लग गए ऐसा दृश्य देखकर समस्त सिद्ध देवता वहां भगवान की लीला देखने को प्रकट हो गए,और खुद वो भक्त पेड़ के नीचे जाकर आँखे बंद करके सोचने लगा की आज इतने लोग आ गए हैं कुछ न मिलेगा, इतने में गुरु जी आगये पेड़ के नीचे चेले को आँखे बन किये हुए देखा पास पड़े अनाज को भी, पुछा क्या हो रहा है ऐसे क्यों बैठे हो, शिष्य कहने लगा भगवान आये हैं अपने साथी भगवानों के साथऔर खाना बनाने लगे हैं, गुरु जी को कुछ न दिखे उन्होंने कहा खान हैं भगवान ,शिष्य सोचने लगा की एक तो कुछ खाने को न मिलेगा ऊपर से गुरु जी को भी न दिख रहे भगवान अगली एकादशी को कुछ अनाज भी न मिलेगा, उसने भगवान को कहा कि गुरु जी को क्यों नहीं दिख रहे हो आप वो सिद्ध हैं विद्वान् है, भगवान ने मुस्कुरा कर कहा कोई संशय नहीं की गुरु आपके सिद्ध और विद्वान् है परंतु उनमें सरलता नहीं, उसने गुरु जी को कहा कि भगवान कहते है कि आपमें सरलता नहीं इसलिये आपको नहिं दिख रहे,गुरु जी भाव विह्ल होकर रोने लगे वैरागी हो गए तत्क्षण भगवान गुरु जी के सामने प्रकट हुए और शिष्य के साथ गुरु भी धन्य हुए, जीना सरल है, जीतना सरल है हारना भी सरल है, प्रेम करना भी सरल है कठिन है सरल होना ,साधना से,तप से विद्वता,सिद्धता तो मिल ही जायेगी सरलता मिलेगी,समर्पण से अस्तित्व के प्रति पूर्ण समर्पण ही सरलता है,।

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